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भाषा को अभिव्यक्त करने का सर्वसुलभ माध्यम लेखनकला है। अर्थात् लिपि के कुछ चिन्हों द्वारा भाषा का दृश्यरुप सुलभ होता है। लिपि भाषा को लिखने का एक उत्तम माध्यम है। लेखन व लिपि के महत्व की यदि बात की जाए तो यह मानव समाज को नई दिशा देने वाले क्रांतिकारी अविष्कारों में से एक है। मनुष्य अपने ज्ञान, विचार , अनुभव तथा कल्पनाओं को मूर्त रूप देने में सक्षम हुआ है। लिपि के द्वारा ही मानव के ज्ञान का, नित-नए अविष्कारों का, विज्ञान, कला, दर्शन व वेद, पुराण, महाभारत, रामायण, ऎतिहासिक ग्रंथ, महाकाव्य, नीतिकाव्य, चम्पूकाव्य, गद्यकाव्य, नाटक, नीतिसाहित्य, ज्योतिषशास्त्र, गणित, वास्तुशास्त्र ईत्यादी प्राचीन वैज्ञानिक शास्त्रों को, विषयों को, साहित्य कासंवर्धन, सर्जन व संरक्षण हो पाया है। मानव के सांस्कृतिक धरोहरों व इतिहास को ज्ञात करने में लिपि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
लेखनकला क्या है? इसका प्रारम्भ कैसे हुआ ? इसका विकासक्रम क्या है? तथा पुरालेखविद्या, प्राचीन लेखन सामग्री व उत्कीर्णक प्राचीन लिपियां, भारतीय प्रादेशिक लिपियां, इनके अलावा कुछ प्रमुख प्राचीन देशों की लिपियों का संक्षिप्त परिचय देने का यहां प्रयास किया गया है।
ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रंथ, शारदा और मोडी लिपियों के लेखन कार्य तथा पठन सीखाने के लिए इस अभ्यासक्रम में प्रयास किया गया है।इस में विद्यार्थियों को सक्रिय रखकर स्वतन्त्रता पूर्वक लिपि सीखने के लिए ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रंथ, शारदा और मोडी
लिपियों के अभ्यास हेतु प्रयत्न किया गया है, इसका उद्देश्य है – लिपि के विविध आकारों को समझना व लेखन का
प्रयत्न करना, वर्णमाला क्रम से लिखने का प्रयास करना, संयुक्ताक्षर को पढना तथा लिखना, इन्हीं कुछ महत्वपूर्ण
बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
(i) Objectives :
· लिपियों के विविध आकारों में साम्यभेद पहचानने में सहायक, विविध अक्षरों को लिखना।
· मूल अक्षरों के अवयव पहचानकर पढना, लिखना जैसे – ब्राह्मी, खरोष्टी, ग्रंथ, शारदा, मोडी लिपि की वर्णमाला।
· सरल संयुक्ताक्षर को पढना और लिखना।
· परिचित शब्द तथा छोटी वाक्य अर्थ समझकर पढना।
· भिन्न-भिन्न हस्तलिखित पढने में रुची उत्पन्न करना।
· लेख, प्रस्तरलेख, स्तंभलेख, शिलालेख वाचन में रूची उत्पन करना।
· विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करने में सहायक।
· विषय-वस्तु को स्पष्ट करने में सहायक।
· ज्ञानेन्द्रियों का अधिक प्रयोग।
· लिपि शिक्षण-स्त्रोत के कमी की पूर्ति करने में सहायक।
· प्रत्यक्ष अनुभव देने में सहायक।
· ज्ञान के स्थायित्व में सहायक।
· अधिगम के स्थानांतर में सहायक।
· कक्षा अन्त:क्रिया के वृद्धि में सहायक।
- Teacher: Dr. Ambalika Sethiya